A UNIQUE LAST STORY

एक अनोखी आखिरी कहानी 



चेप्टर -1 

3 मेजिकल वर्ड्स 

     उसकी उम्र 10 साल की थी जबसे वह आसमान में उड़ने के ख्वाब देखने लगा था। वो इसी समय अपने सपनो के लिए सब कुछ करने को तैयार था। तैयार था वह जिंदगी की जंग में अभी से कूदने के लिए। लाइफ की हर मुश्किल से अनजान वह मासूम जो की अब युवक बनने जा रहा था । जिंदगी की हकीकत से बिलकुल वाकिफ नहीं था। उसे तो सिर्फ जीतना दिखता था। उसकी नजर में हर काम उसे जीत की तरफ ले जाने वाला था। क्योकि उसे पता था की हीरो हमेशा जीतता है। देखा था उसने फिल्मो में। 

     उसे इस बात को कौन बताये की रियल लाइफ में विलेन ही जीतता है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो ही हीरो की जीत होती है। कभी कभी तो हीरो की जीत का क्रेडिट भी विलेन ही ले जाता है। यदि उसे इन बातों का पता चल भी जाता तो क्या फर्क पड़ता। उसे तो जीत का भूत सवार था। उसकी थिंक बहुत पॉजिटिव थी। 

सकारात्मक सोच (Positive Think)

     पॉजिटिव थिंक को मैं दुनिया का आठवाँ अजूबा कहूंगा। जिसने इसकी ताकत को पहचान लिया वह मास्टरी कर लेगा अपनी फील्ड में। जिसने इसका यूज़ करना सीख गया हार को भी हारना पड़ेगा उससे। पॉजिटिव थिंक बिजनेसमैनों का मुख्य हथियार है। दुनिया पॉजिटिव थिंक के कारन ही इतनी पावरफुल बनती जा रही है। 

     यही ताकत थी उसमे। यही जज्बा था एक और बहुत खूबसूरत बात थी उसमे। वह किसी भी गलती को फ़ौरन स्वीकार कर लेता। सॉरी बोलकर वो अपनी गलती मानकर तेजी से सीखता था। वही दूसरी ओर प्लीज बोलकर लोगों से फ्री में वो काम करवा लेता जो वो दूसरों के लिए पैसा लेकर भी नहीं करते।

माफ़ी माँगना और प्रसन्न करना(Sorry and Please) 

     सॉरी और प्लीज इन दोनों वर्ड्स को यदि मैं दुनिया के नौवें अजूबे कहूँ तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सॉरी में वह दम है दोस्त की पत्थर को भी पिघला सकती है। प्लीज का तो कहना ही क्या इसने तो लोगों के दिलों में राज किया है। प्यार करने वालों के बीच होने वाली बातों में सॉरी और प्लीज ही मुख्य किरदार निभाते हैं। आप अपनी डेली हेबिट में इन दोनों शब्दों को शामिल करलो। हर दिन कम से कम 10 बार इनका यूज़ करने की आदत दाल लो फिर देखो चमत्कार हो जायेगा। लोग आपको कहेंगे आप वैसे नहीं रहे जैसे पहले थे। आप बदल गए हैं।जब वह बड़ा हो गया तो उसने बताया की  सॉरी और प्लीज का देखो मैंने अपनी लाइफ में कैसे उपयोग किया है। 

     एक दिन मुझे एक व्यपारी के कुछ पैसे चुकाने थे। कुछ प्रॉब्लम थी इसलिए में टाइम में दे नहीं पा रहा रहा था। हर दिन कुछ न कुछ बहाना करके ताल देता क्योकि मेरे पास उस समय पैसे की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। हालाँकि में अपने जिओ जान से लगा था उसके पैसे का इंतजाम करने में। लेकिन उसे लग रहा था की में उसे घुमा  रहा हूँ। पता नहीं क्यों मैं उसे अपनी बात समझा नहीं पा रहा था की प्रॉब्लम कहाँ है। एक दिन उसने मुझे फटकार लगाते हुए कहा की उसे एक डेट चाहिए जिस दिन मैं उसका पैसा दे दूंगा। मैं सहमत हो गया। फिर मैंने एक दूर की डेट देने लगा उसे। जिसपर वह सहमत नहीं हुआ। फिर कुछ दिन मैंने कम किये और कुछ दिन उसने बढ़ाये बड़ी खींचतानी के बाद एक तारीख डिसाइड हुयी। जिस पर हम दोनों सहमत हो गए। 

     डेट जैसे जैसे नजदीक आ रही थी। उसकी ख़ुशी और मेरा गम बढ़ता जा रहा था। आखिर वह दिन आ ही गया। हम दोनों सामने थे। मेरी लाख कोशिशों के बाद पैसे का इंतजाम तो हो गया था। लेकिन उस दिन नहीं बल्कि उसके एक दिन बाद मिलने वाले थे मुझे पैसे। वो सामने था। 

     उसने कहा चलो लाओ भाई पैसे बहुत परेशान कर डाला भाई तूने। मुझे पहले पता होता तो मैं ये समय ही न आने देता। मेरे पास पैसों के अलावा उसे बोल पाने के लिए कुछ शब्द भी नहीं थे। मेरा गला सूख रख रहा था। तभी उसने फिर से तपाक से कहा दे न भाई अब टाइम क्यों लगा रहा है। मेरे दिल की धड़कन तेज हो चुकी थी। मेरे दिमाग में उस समय केवल दो ही सब्द दौड़ रहे थे क्या करूँ ???

     वह तीसरी बार बोलने वाल था की रुक गया क्योकि तभी धीरे से मेरे मुँह से आवाज निकलती हुयी उसने महसूस की थी। मैंने उस समय केवल एक ही सेन्टेन्स बोला -

     "आज व्यवस्था नहीं हो पायी है कल ले लेना मेरे दोस्त प्लीज़ "

     इस वाक्य ने उसके दिल में घर कर दिया। हलाकि वह मेरी उम्र का ही नवयुवक था। पर जाने क्यों जैसे उसका गुस्सा काफूर हो गया था। वह आज्ञाकारी भेड़ की तरह अपनी कार में घुस गया। जाते समय उसने कहा ओके कल मिलते हैं। हालांकि दुसरे दिन भी वह मेरे बताये हुए टाइम पर पंहुचा और मैंने उसका पूरा चूका दिया। पर आज सुरु से ही उसके चेहरे पर गुस्सा नहीं बल्कि आत्मविश्वास था। मुझे खुद पता नहीं था उसे हो क्या गया पर वह बदल गया था। जाते समय उसने मुझे साथ में काफी पीने के लिए ऑफर किया। मैंने सहमति में सर हिलाया। 

     फिर काफी सॉफ में उसने अपनी दुःख भरी कहानी सुनाई की किस तरह से उसके पिता के निधन के बाद कम उम्र में ही उसकी पढाई छूट गई  और मजबूरन उसे अपने पिता के बिज़नेस को संभालना पड़ा। तब से जाकर अभी तक वह अपनी लाइफ में इस तरह व्यस्त रहता था की उसे लाइफ एंज्वाय करने का कभी टाइम ही नहीं मिलता था। उसके गिने चुने दोस्त थे जिनसे वह साल में एकाध बार बड़ी मुश्किल से मिल पता था। 

     उसने कहा की जब मैंने उसे दोस्त कहा और प्लीज बोला तो उसके सरीर से झार सी छूट गयी थी। पहली पर उससे मैंने इतने अच्छे से बात की थी। तब से आज तक हम दोनों अच्छे दोस्त हैं। 

धन्यवाद (Thanks)

चेप्टर - 2 


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